सृजन
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तेरे कहने से हँस देता हूँ लेकिन आँखेँ नम रहने दो ।
दुख ही दुख की दवा अगर है तो पास ये मरहम रहने दो ।
कोशिश न करो तुम दिल के बंजर मे पौध लगाने की ,
जिसका न कोई ठौर ठिकाना मुझमेँ वो पतझड़ रहने दो ।
जाने कितने लोग मिले और फिर से तनहा छोड़ गये ,
जिसने हर पल साथ दिया है पास मेरे वो गम रहने दो ।
तू दिल की हर बात समझता और सिर्फ मुझी पे मरता है ,
पता है ये सब बातेँ झूठी हैँ लेकिन ये भरम रहने दो ।
मत रोको ‘कुमार’ लोगोँ को, जो कहते हैँ कह लेने दो ,
अपनी पीड़ा का दम घुटने दो और जुबाँ चुप रहने दो ।
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