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गजल-उजाले बचाकर रखिये!

सृजन
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कभी-कभी खुद से मिलने के बहाने बचाकर रखिये!
इतने खुदगर्ज मत बनो ,रिश्ते नाते बचाकर रखिये !
पत्थरोँ के इस शहर मेँ प्यास कैसे बुझाओगे ,
बावड़ी ,तालाब और नाले बचाकर रखिये!
जिँदगी के इस सफर मेँ ,तुम भी एक मुसाफिर हो ,
इसलिए अपने शहर के धर्मशाले बचाकर रखिये!
शरीफोँ की शराफत पर कभी भरोसा मत करना ,
घर की सलामती के लिए ताले लगाकर रखिये!
घरोँ के अन्दर चाहे सजा लो फानूस और झालर ,
लेकिन दरवाजे पर जाले सजाकर रखिये!
ढक लो चिरागोँ को ,आँधियाँ आने वाली हैँ ,
‘कुमार’ अपने घरोँ मेँ उजाले बचाकर रखिये!

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